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जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया | शाही शायरी
jazb-e-dil jab ba-ru-e-kar aaya

ग़ज़ल

जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया

फ़ानी बदायुनी

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जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया
हर नफ़स से पयाम-ए-यार आया

मौत का इंतिज़ार था आई
जाइए अब मुझे क़रार आया

जब किसी ने लिया तुम्हारा नाम
गिर्या बे-क़स्द-ओ-इख़्तियार आया

बे-क़रारी में अब ये होश नहीं
किस के दर पर तुझे पुकार आया

फ़र्श-ए-गुल फिर बिछा रही है नसीम
आइए मौसम-ए-बहार आया

आज हम पी सके न वो आँसू
उन के आगे जो बार बार आया

ख़ैर तो है कि आप के दर से
आज 'फ़ानी' उम्मीद-वार आया