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जवाँ था दिल न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पहले | शाही शायरी
jawan tha dil na tha andesha-e-sud-o-ziyan pahle

ग़ज़ल

जवाँ था दिल न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पहले

जामी रुदौलवी

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जवाँ था दिल न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पहले
वो थे क्या मेहरबाँ सारा जहाँ था मेहरबाँ पहले

वो मीर-ए-कारवाँ भी इक-न-इक दिन हो के रहते हैं
जिन्हों ने मुद्दतों छानी है ख़ाक-ए-कारवाँ पहले

ख़ुदी जागी उठे पर्दे उजागर हो गईं राहें
नज़र कोताह थी तारीक था सारा जहाँ पहले

वही बर्क़-ए-तजल्ली शम्अ' है मेरे शबिस्ताँ की
न ला सकती थी जिस की ताब शाख़-ए-आशियाँ पहले

हूँ अब भी पा-ब-गिल ताहम बहुत परवाज़ की मैं ने
वो अब मेरी ज़मीं है था जो मेरा आसमाँ पहले

निहाँ थीं दर-ब-दर की ठोकरों में अज़्मतें 'जामी'
न था इस दर्जा आली तेरा अंदाज़-ए-बयाँ पहले