जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
दरख़ुर-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ न हुआ
सई-ए-जाँ लाएक़-ए-दविश न हुई
दर्द-ए-दिल क़ाबिल-ए-दवा न हुआ
ढेर है इक ग़ुबार-ए-ख़ातिर का
ख़ाक है जिस का दिल सफ़ा न हुआ
हैफ़ दस्त-ए-दुआ-ओ-दामन-ए-नाज़
ख़ैर गुज़री कि तू ख़ुदा न हुआ
वहदहू-ला-शरीक क्या मअ'नी
न हुआ तू ही आश्ना न हुआ
रश्क-ए-बाहम अज़ल से अव्वल है
एक की शक्ल दूसरा न हुआ
वास्ते दिल के है जिगर दरकार
दिल-रुबा भी तो दिल-रुबा न हुआ
साफ़ हाथों से तेरे उड़ जाता
ख़ूँ मिरा ताइर-ए-हिना न हुआ
ऐ फ़लक मिलते मिलते खो जाता
किसी मुफ़्लिस का आसरा न हुआ
याद दिलवाना क्यूँ नहीं मायूब
शुक्र कब शिकवा-ए-जफ़ा न हुआ
रहबरी और मुझ से वहशी की
रहनुमा अपना रहनुमा न हुआ
बे-नसीबी-ए-बादशाह न पूछ
इस गदाई पे भी गदा न हुआ
न निकलता कभी मिरे दिल से
मेरा ही तू भी मुद्दआ न हुआ
कौन बेहतर अदू से हो सच है
कुश्ता-ए-ज़िल्लत-ए-वफ़ा न हुआ
अहल-ए-क़िबला को है तलाश-ए-इमाम
ऐ 'क़लक़' तू ही पारसा न हुआ
ग़ज़ल
जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
ग़ुलाम मौला क़लक़