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जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़ | शाही शायरी
jast bharta hua farda ke dahane ki taraf

ग़ज़ल

जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़

अंजुम सलीमी

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जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
जा निकलता हूँ किसी और ज़माने की तरफ़

आँख बेदार हुई कैसी ये पेशानी पर
कैसा दरवाज़ा खुला आईना-ख़ाने की तरफ़

ख़ुद ही अंजाम निकल आएगा इस वाक़िए से
एक किरदार रवाना है फ़साने की तरफ़

हल निकलता है यही रिश्तों की मिस्मारी का
लोग आ जाते हैं दीवार उठाने की तरफ़

दरमियाँ तेज़ हवा भी है ज़माना भी है
तीर तो छोड़ दिया मैं ने निशाने की तरफ़

एक बिछड़ी हुई आवाज़ बुलाती है मुझे
वक़्त के पार से गुम-गश्ता ठिकाने की तरफ़