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जंगलों में कहीं खो जाना है | शाही शायरी
jangalon mein kahin kho jaana hai

ग़ज़ल

जंगलों में कहीं खो जाना है

ख़लील मामून

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जंगलों में कहीं खो जाना है
जानवर फिर मुझे हो जाना है

रास्ते में कहीं साया जो मिले
उम्र भर के लिए सो जाना है

ये समुंदर हैं बहुत ना-काफ़ी
सारी दुनिया को डुबो जाना है

कोई क़ीमत नहीं इन अश्कों की
मुंतक़िल धरती में हो जाना है

कोई मंज़िल नहीं मिलती 'मामून'
कहीं रस्ते ही में सो जाना है