जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
कब तलक ढूँडूँ कहाँ तक जादा-पैमाई करूँ
गर कोई माने न हो वाँ सज्दा करने का मुझे
आस्तान-ए-यार पर बरसों जबीं-साई करूँ
बज़्म-ए-हस्ती में नहीं जुज़ बेकसी अपना रफ़ीक़
किस की ख़ातिर दोस्तो मैं महफ़िल-आराई करूँ
ग़ारत-ए-दिल का जो करता है इरादा तर्क-ए-चश्म
ग़म्ज़ा कहता है मैं ताराज शकेबाई करूँ
ले गए जब तेरे दीवाने को ईसा ने कहा
हर घड़ी मैं क्या इलाज-ए-मर्द-ए-सौदाई करूँ
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
ग़ज़ल
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस