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जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया | शाही शायरी
jang mein jaega ab mera hi sar jaan gaya

ग़ज़ल

जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया

फ़ारूक़ अंजुम

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जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया
और होगा न कोई सीना-सिपर जान गया

मुझ शनावर को डुबो सकते नहीं दोनों हरीफ़
मैं भी तूफ़ान का दरिया का हुनर जान गया

ऊँची पर्वाज़ की हिम्मत भी तो कर ले कर्गस
लाख शाहीन का अंदाज़-ए-सफ़र जान गया

आज तलवार हुई जाती हैं शाख़ें उस की
जंग होनी है हवाओं से शजर जान गया

इस के आँगन में भी मिट्टी के सिवा कुछ भी नहीं
चाँद के घर में जो पहुँचा तो बशर जान गया