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जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद | शाही शायरी
jamal-gah-e-taghazzul ki tab-o-tab teri yaad

ग़ज़ल

जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद

इफ़्तिख़ार मुग़ल

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जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद
प तंगनाए-ग़ज़ल में समाए कब तिरी याद

किसी खंडर से गुज़रती हवा का नम! तिरा ग़म!!
शजर पे गिरती हुई बर्फ़ का तरब तिरी याद

तू मुझ से मेरे ज़मानों का पूछती है तो सुन!
तिरा जुनूँ, तिरा सौदा, तिरी तलब, तिरी याद

गुज़र-गहों को उजड़ने नहीं दिया तू ने
कभी यहाँ से गुज़रती थी तू, और अब तिरी याद

ये क़ैद-ए-उम्र तो कटती नज़र नहीं आती!
बस इक क़रीना! तिरा ध्यान, एक ढब! तिरी याद

ब-फ़ैज़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत मैं ख़ुश नसब, मैं नजीब!
मिरा क़बीला तिरा ग़म, मिरा नसब तिरी याद

ब-जुज़ हिकायत-ए-तू ईं वजूद-ए-चीज़-ए-नीस्त
मैं कुल का कुल तिरा क़िस्सा मैं सब का सब तिरी याद

दरीं गुमान-कदा कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान
बस इक छलावा मिरा इश्क़, एक छब तिरी याद

बहर सबील-ए-हुनर का सफ़र तो जारी है
कभी कुछ और बहाना, कभू सबब तिरी याद