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जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास | शाही शायरी
jama hain sare musafir na-KHuda-e-dil ke pas

ग़ज़ल

जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास

हरी चंद अख़्तर

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जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास
कश्ती-ए-हस्ती नज़र आती है अब साहिल के पास

सारबाँ किस जुस्तुजू में है यहाँ मजनूँ कहाँ
अब बगूला भी न भटकेगा तिरे महमिल के पास

इब्तिदा-ए-इश्क़ या'नी एक मोहलिक हादसा
आ गई हस्ती यकायक मौत की मंज़िल के पास

ने'मतों को देखता है और हँस देता है दिल
महव-ए-हैरत हूँ कि आख़िर क्या है मेरे दिल के पास

ये तिरे दस्त-ए-करम को खींच लेगा एक दिन
ऐ ख़ुदा रहने न दे दस्त-ए-दुआ साइल के पास