EN اردو
जल्वे बेहोश न कर दें तिरे दीवानों को | शाही शायरी
jalwe behosh na kar den tere diwanon ko

ग़ज़ल

जल्वे बेहोश न कर दें तिरे दीवानों को

सय्यद हबीब

;

जल्वे बेहोश न कर दें तिरे दीवानों को
शम्अ' की लौ न कहीं फूँक न दे परवानों को

कर न तल्क़ीन-ए-अदब बज़्म में मस्तानों को
होश रहता है किसे देख के पैमानों को

सुब्ह की पहली किरन शब का हटाती है नक़ाब
ज़िंदगी अज़-सर-ए-नौ मिलती है अरमानों को

ज़ीस्त बे-रंग थी सादा थी कहानी दिल की
रंग बख़्शा तिरी उल्फ़त ने ही अफ़्सानों को

ये तबस्सुम ये तकल्लुम ये तरन्नुम ये अदा
बे-क़रार और भी करते हैं परेशानों को

चंद काँटे रह-ए-दुनिया से हटाए हैं ज़रूर
गुलिस्ताँ गरचे बनाया न बयाबानों को

मुद्दतों की वो मिरी तिश्ना-लबी है कि 'हबीब'
तकती है दूर से ख़ामोश जो पैमानों को