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जल्वा-सामाँ है रंग-ओ-बू हम से | शाही शायरी
jalwa-saman hai rang-o-bu humse

ग़ज़ल

जल्वा-सामाँ है रंग-ओ-बू हम से

नासिर काज़मी

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जल्वा-सामाँ है रंग-ओ-बू हम से
इस चमन की है आबरू हम से

दर्स लेते हैं ख़ुश-ख़िरामी का
मौज-ए-दरिया-ओ-आब-जू हम से

हर सहर बारगाह-ए-शबनम में
फूल मिलते हैं बा-वज़ू हम से

हम से रौशन है कार-गाह-ए-सुख़न
नफ़स-ए-गुल है मुश्कबू हम से

शब की तन्हाइयों में पिछले पहर
चाँद करता है गुफ़्तुगू हम से

शहर में अब हमारे चर्चे हैं
जगमगाते हैं काख़-ओ-कू हम से