जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह
दिल-ए-बे-जान कूँ जलाता रह
दिल हमारा ग़रीब-ख़ाना है
गाह गाह इस तरफ़ भी आता रह
ख़ुश्क होते हैं दम-ब-दम लब-ए-ज़ख़्म
आब शमशीर का पिलाता रह
इश्क़ आता है फ़ौज-ए-ग़म ले कर
तुझ कूँ कहता हूँ होश, जाता रह
ताकि ख़ुश होवे गुल-बदन बुलबुल
अक्सर अपनी ग़ज़ल सुनाता रह
मंसब-ए-इश्क़ है अगर तुझ कूँ
नौबत-ए-आह कूँ बजाता रह
शम्अ-रू सीं 'सिराज' जा कर बोल
कि पतिंगों कूँ मत जलाता रह
ग़ज़ल
जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह
सिराज औरंगाबादी