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जल्वा-ए-दोस्त किसी वक़्त भी रू-पोश नहीं | शाही शायरी
jalwa-e-dost kisi waqt bhi ru-posh nahin

ग़ज़ल

जल्वा-ए-दोस्त किसी वक़्त भी रू-पोश नहीं

अज़ीज़ वारसी

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जल्वा-ए-दोस्त किसी वक़्त भी रू-पोश नहीं
हाए महरूमी-ए-क़िस्मत कि हमें होश नहीं

आप एहसान के अंदाज़ तो सीखें पहले
फ़ितरत-ए-इश्क़ भी एहसान-फ़रामोश नहीं

सिर्फ़ वो लोग ही दीवाना समझते हैं मुझे
आज इस दौर में अपना भी जिन्हें होश नहीं

वो मिरी बादा-परस्ती को अभी क्या जाने
जो मिरी तरह अभी मय-कदा-बर-दोश नहीं

जाम उठाता हूँ तिरे हुक्म से महफ़िल में मुदाम
मैं बला-नोश नहीं हूँ मैं बला-नोश नहीं

साक़ी-ए-बज़्म तिरी मस्त-निगाहों का असर
दिल पे किस वक़्त हुआ था ये मुझे होश नहीं

वो भी कहते हैं मुझे मैं जिन्हें कहता हूँ 'अज़ीज़'
होश अब उन को नहीं है कि मुझे होश नहीं