जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है 
लन-तरानी आशिक़ों की घात है 
आश्ना जिस का है तू आराम-ए-जाँ 
वो जहाँ में मोरिद-ए-आफ़ात है 
बोसा-ए-रुख़ दे ज़कात-ए-हुस्न है 
ऐ हसीं ये दाख़िल-ए-हस्नात है 
आइना-ख़ाना बना है मेरा दिल 
देख ले क्या ख़ुशनुमा मिरआत है 
जान-ओ-दिल था नज़्र तेरी कर चुका 
तेरे आशिक़ की यही औक़ात है 
गिर्या-ए-उश्शाक़ पर हैं ख़ंदा-ज़न 
कहते हैं क्या ख़ुशनुमा बरसात है 
हिज्र की शब है हुजूम-ए-सद-बला 
मैं हूँ तन्हा और ख़ुदा की ज़ात है 
ख़ात्मा-बिल-ख़ैर हो जाए कहीं 
शर्म अपनी अब ख़ुदा के हाथ है 
ज़िंदगी है चार दिन की चाँदनी 
फिर वही 'साक़ी' अँधेरी रात है
        ग़ज़ल
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
पंडित जवाहर नाथ साक़ी

