जल्वा दिखा के गुज़रा वो नूर दीदगाँ का
तारीक कर गया घर हसरत-ए-कशीदगाँ का
ग़म यार का न भूले सो बाग़ अगर दिखा दें
कब दिल चमन में वा हो मातम-रसीदगाँ का
रंग-ए-हिना पे तोहमत उस लाला-रू ने बाँधी
हाथों में मल के आया ख़ूँ दिल-तपीदगाँ का
अहल-ए-क़ुबूर ऊपर वो शोख़ कल जो गुज़रा
बेताब हो गया दिल ख़ाक-आरमीदगाँ का
यूँ 'मीर' से सुना है वो मस्त-ए-जाम 'बेदार'
तह कर गया मुसल्ला उज़्लत-गुज़ीदगाँ का
ग़ज़ल
जल्वा दिखा के गुज़रा वो नूर दीदगाँ का
मीर मोहम्मदी बेदार