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जल्वा चारों ओर था | शाही शायरी
jalwa chaaron or tha

ग़ज़ल

जल्वा चारों ओर था

सरशार बुलंदशहरी

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जल्वा चारों ओर था
बीच में इक मोर था

सीधा सादा आदमी
बरता तो चौकोर था

दोहराऊँ अल्फ़ाज़ को
आवाज़ों का शोर था

मर्ज़ी उस की छोड़िए
अपना कोई ज़ोर था

आँखों में क्यूँ ख़ौफ़ था
दिल में कोई चोर था

मैं दिल्ली में मुंतज़िर
वो पापी लाहौर था