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जल्वा बे-माया सा था चश्म-ओ-नज़र से पहले | शाही शायरी
jalwa be-maya sa tha chashm-o-nazar se pahle

ग़ज़ल

जल्वा बे-माया सा था चश्म-ओ-नज़र से पहले

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

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जल्वा बे-माया सा था चश्म-ओ-नज़र से पहले
ज़ीस्त इक हादसा थी क़ल्ब-ओ-जिगर से पहले

हुस्न के सोज़-ए-नुमाइश का है इनआम-ए-हयात
वक़्त भी वक़्त न था शम्स-ओ-क़मर से पहले

वही उतरी दिल-ए-बेताब की तश्कील के ब'अद
इश्क़ तामीर हुआ इल्म-ओ-हुनर से पहले

ऐन फ़िरदौस में जल उट्ठा था आदम का शबाब
आग बरसी थी यहीं दीदा-ए-तर से पहले

फिर कहीं दिल के सिवा उन को अमाँ ही न मिली
बुत निकाले गए अल्लाह के घर से पहले

ज़िंदगी मज़रा-ए-तकलीफ़-ओ-सुकूँ है 'अफ़ज़ल'
शाम उगती है यहाँ नूर-ए-सहर से पहले