EN اردو
जलती हवाएँ कह गईं अज़्म-ए-सबात छोड़ दे | शाही शायरी
jalti hawaen kah gain azm-e-sabaat chhoD de

ग़ज़ल

जलती हवाएँ कह गईं अज़्म-ए-सबात छोड़ दे

सज्जाद बाबर

;

जलती हवाएँ कह गईं अज़्म-ए-सबात छोड़ दे
तेरा बदन पिघल गया दस्त-ए-हयात छोड़ दे

आग से खेल खेल कर कितने जला लिए हैं हाथ
तुझ से कहा था बारहा देख ये बात छोड़ दे

मैं तेरे साथ हूँ मगर ये वो मक़ाम है कि अब
जो तेरे जी में आए कर जा मेरी बात छोड़ दे

तेरी नज़र सराब पर मुझ को अज़ीज़ गर्द-ए-राह
तू मेरा हम-सफ़र नहीं तो मेरा हाथ छोड़ दे

तिश्ना लबों को चूम कर कोई तो हो जो ये कहे
लश्कर-ए-मस्लिहत-शनास हट जा फ़ुरात छोड़ दे

मार्का-ए-बला की शब किस ने कहा ब-सद-ख़ुलूस
वो भी मुझे अज़ीज़ है जो मेरा साथ छोड़ दे