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जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे | शाही शायरी
jalti bujhti si rahguzar jaise

ग़ज़ल

जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे

अहमद ज़िया

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जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे
ज़िंदगी दूर का सफ़र जैसे

इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
उस से मिलना है उम्र भर जैसे

इस मोहल्ले में इक जवाँ लड़की
बीच अख़बार में ख़बर जैसे

एक मानूस सी सदा गूँजी
दूर यादों का इक नगर जैसे