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जलती बुझती हुई आँखों में सितारे लिक्खे | शाही शायरी
jalti bujhti hui aankhon mein sitare likkhe

ग़ज़ल

जलती बुझती हुई आँखों में सितारे लिक्खे

अज़रा वहीद

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जलती बुझती हुई आँखों में सितारे लिक्खे
बाब लिक्खे नहीं उन्वान तो सारे लिक्खे

मंज़र-ए-ग़म था शफ़क़ रंग कहाँ अक्स उतरा
ख़ून का रंग लिखा शाम के प्यारे लिक्खे

नज़्र-ए-तूफ़ान हुए सारे सफ़ीनों के चराग़
वो अँधेरे जो निगाहों ने सहारे लिक्खे

पैकर-ए-सब्र-ओ-रज़ा वाक़िफ़-ए-रम्ज़-ए-हस्ती
दस्त-ए-लम्हात ने यूँ नाम हमारे लिक्खे

आगही ने दिए इबहाम के धोके क्या क्या
शरह-ए-अल्फ़ाज़ जो लिक्खी तो इशारे लिक्खे