EN اردو
जले चराग़ भला कैसे ता-सहर कोई | शाही शायरी
jale charagh bhala kaise ta-sahar koi

ग़ज़ल

जले चराग़ भला कैसे ता-सहर कोई

असअ'द बदायुनी

;

जले चराग़ भला कैसे ता-सहर कोई
हवा के पास नहीं दूसरा हुनर कोई

उभरती डूबती गुज़रे हुए विसाल की नाव
बदन के बहर में पड़ता हुआ भँवर कोई

ये दिल-जज़ीरा किसी धुँद के ग़िलाफ़ में है
सो अब जहाज़ नहीं आएगा इधर कोई

उदास चाँद ने दरिया के दर पे दस्तक दी
ख़ुश-आमदीद को बढ़ने लगा भँवर कोई

किसी सवाल का चेहरा किसी ख़याल का फूल
नवाह-ए-जाँ में कहाँ हर्फ़-ए-मो'तबर कोई