जलाओ ग़म के दिए प्यार की निगाहों में
कि तीरगी है बहुत ज़िंदगी की राहों में
सुना कि अब भी सर-ए-शाम वो जलाते हैं
उदासियों के दिए मुंतज़िर निगाहों में
ग़म-ए-हयात ने दामन पकड़ लिया वर्ना
बड़े हसीन बुलावे थे उन निगाहों में
कहीं क़रीब कहीं दूर हो गए 'जामी'
वो ज़िंदगी की तरह ज़िंदगी की राहों में
ग़ज़ल
जलाओ ग़म के दिए प्यार की निगाहों में
ख़ुर्शीद अहमद जामी