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जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर | शाही शायरी
jaise koi rota hai gale pyar se lag kar

ग़ज़ल

जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर

अज़ीज़ एजाज़

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जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर
कल रात मैं रोया तिरी दीवार से लग कर

हर एक के चेहरे पे है तशवीश नुमायाँ
बैठे हैं मसीहा तिरे बीमार से लग कर

फूलों की मोहब्बत ने सबक़ मुझ को सिखाया
ज़ख़्मी जो हुए हाथ मिरे ख़ार से लग कर

ग़म्माज़ि-ए-ख़ुशबू पे खुला राज़ चमन में
गुज़री है सबा गेसू-ए-दिलदार से लग कर

जब जब दिल-ए-वहशी को तिरे ग़म ने सताया
हम बैठ गए ज़ानू-ए-ग़मख़्वार से लग कर

समझा उसे फूलों की नवाज़िश दिल-ए-सादा
जो ज़ख़्म लगा नोक-ए-सर-ए-ख़ार से लग कर

'एजाज़' कोई शौक़ नहीं सैर-ए-जहाँ का
आराम से बैठे हैं दर-ए-यार से लग कर