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जैसे हम आते हैं ख़िदमत में सभी आया करें | शाही शायरी
jaise hum aate hain KHidmat mein sabhi aaya karen

ग़ज़ल

जैसे हम आते हैं ख़िदमत में सभी आया करें

महशर बदायुनी

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जैसे हम आते हैं ख़िदमत में सभी आया करें
लेकिन ऐ जान-ए-करम जब हम चले जाया करें

मेरा ज़िक्र आते ही चुप होने का कोई मुद्दआ
कुछ तो आख़िर वो मिरे बारे में फ़रमाया करें

सब हैं वैसे और कोई भी नहीं इस शहर में
ये कहीं जाने की बस्ती है कहाँ जाया करें

सब हैं वैसे और कोई भी नहीं इस शहर में
ये कहीं जाने की बस्ती है कहाँ जाया करें

तिश्नगी भी मस्लहत है लेकिन अंदाज़े के साथ
ज़र्फ़ वाले अब हमें इतना न तरसाया करें

कल से कुछ गलियों में बातें हो रही हैं और इधर
हम भी अब ठहरेंगे कम वो भी गुज़र जाया करें

हम तो क़िस्से कहते कहते थक गए चुप हो गए
अब हमारी दास्तानें लोग दोहराया करें

मुझ को घर की रौनक़ों ने ये न दी होगी दुआ
तेरे सर पर उम्र भर तन्हाइयाँ साया करें

क्या तसल्ली दूँ अब इस अरमान-ए-तिफ़्लाँ पर कि आप
कोई दिन तो रात से पहले भी घर आया करें

हो शुमार अपना भी आसूदा-नसीबों में अगर
आगही के ज़ख़्म बाज़ारों में बिक जाया करें

'महशर' अच्छा है ख़्याल-ए-रस्म-ओ-राह-ए-दिल मगर
बात नाज़ुक है ज़बाँ पर सोच कर लाया करें