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जैसे दरिया में गुहर बोलता है | शाही शायरी
jaise dariya mein guhar bolta hai

ग़ज़ल

जैसे दरिया में गुहर बोलता है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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जैसे दरिया में गुहर बोलता है
सात पर्दों में हुनर बोलता है

तेरी ख़ामोशी से दहशत है अयाँ
तेरी आवाज़ में डर बोलता है

जाग औरों को जगाने के लिए
बोल जिस तरह गजर बोलता है

दिल की धड़कन से लरज़ता है बदन
अपनी वहशत में खंडर बोलता है

ये वही साअ'त-ए-बेदारी है
जब दुआओं में असर बोलता है

हो गया रंग-ए-सुख़न से ज़ाहिर
शेर में ख़ून-ए-जिगर बोलता है