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ये कौन जल्वा-फ़गन है मिरी निगाहों में | शाही शायरी
ye kaun jalwa-fagan hai meri nigahon mein

ग़ज़ल

ये कौन जल्वा-फ़गन है मिरी निगाहों में

जहाँगीर नायाब

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ये कौन जल्वा-फ़गन है मिरी निगाहों में
क़दम क़दम पे बरसता है नूर राहों में

भरोसा हद से सिवा था मुझे कभी जिस पर
मिरे ख़िलाफ़ है शामिल वही गवाहों में

सुपुर्दगी का ये आलम भी क्या क़यामत है
सिमट के यूँ तेरा आ जाना मेरी बाहोँ में

तिरी पनाह में रह कर भी जो नहीं महफ़ूज़
मिरा शुमार है ऐसे ही बे-पनाहों में

कब आसमान का फटता है दिल ये देखना है
बदल रही हैं मिरी सिसकियाँ कराहों में

मैं कैसे पेश करूँ दावा पारसाई का
मैं एक उम्र मुलव्विस रहा गुनाहों में

बना है जब से वो 'नायाब' हम-सफ़र मेरा
बिछे हुए हैं मसर्रत के फूल राहों में