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जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ | शाही शायरी
jahan rang-o-bu hai aur main hun

ग़ज़ल

जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

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जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
बहार-ए-आरज़ू है और मैं हूँ

सुकूँ का काम क्या इस मय-कदे में
अज़ल से हा-ओ-हू है और मैं हूँ

इलाही शरअ' में रक्खा ही क्या है
नमाज़-ए-बे-वज़ू है और मैं हूँ

जो तुम आए तो आई जान में जाँ
मुक़द्दर रू-ब-रू है और मैं हूँ

मिरी रुस्वाइयाँ हैं और तुम हो
तुम्हारी गुफ़्तुगू है और मैं हूँ

तिरे दीदार की जूया हैं आँखें
तलाश-ए-चार-सू है और मैं हूँ

अजब शय ख़ुद-फ़रामोशी है 'कैफ़ी'
सुराही है सुबू है और मैं हूँ