EN اردو
जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही | शाही शायरी
jahan KHarab sahi hum badan-darida sahi

ग़ज़ल

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही

ग़ालिब अयाज़

;

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही
तिरी तलाश में निकले हैं पा-बुरीदा सही

जहान-ए-शेर में मेरी कई रियासतें हैं
मैं अपने शहर में गुमनाम ओ ना-शुनीदा सही

भले ही छाँव न दे आसरा तो देता है
ये आरज़ू का शजर है ख़िज़ाँ-रसीदा सही

इन्ही बुझी हुई आँखों में ख़्वाब उतरेंगे
यक़ीं न छोड़ ये बीमार ओ शब-गुज़ीदा सही

दिलों को जोड़ने वाली ग़ज़ल सलामत है
तअल्लुक़ात हमारे भले कशीदा सही