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जहाँ जहाँ पर क़दम रखोगे तुम्हें मिलेगी वहीं उदासी | शाही शायरी
jahan jahan par qadam rakhoge tumhein milegi wahin udasi

ग़ज़ल

जहाँ जहाँ पर क़दम रखोगे तुम्हें मिलेगी वहीं उदासी

आयुष चराग़

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जहाँ जहाँ पर क़दम रखोगे तुम्हें मिलेगी वहीं उदासी
ये राज़ कुछ इस तरह समझ लो मकाँ मिरा है मकीं उदासी

समय की आँखों से देखिए तो हर इक खंडर में छुपे मिलेंगे
कहीं पे बचपन कहीं जवानी कहीं बुढ़ापा कहीं उदासी

मिरे शबिस्ताँ के पास कोई बुरी तरह कल सिसक रहा था
मैं उस के सीने से लग के बोला नहीं उदासी नहीं उदासी

बधाई चहकीं दुआएँ गूँजी तमाम चेहरे ख़ुशी से झूमे
क़ुबूल है तीन बार बोली जब एक पर्दा-नशीं उदासी

बिछड़ने वाले बिछड़ते टाइम न कह सके कुछ न सुन सके कुछ
बस एक फोटो में क़ैद कर ली गई बला की हसीं उदासी

शफ़ीक़ सूरज ख़मोश पानी मगर अभी भी कमी है कुछ कुछ
'चराग़'-साहब के शे'र पढ़ कर करें मुकम्मल हमीं उदासी