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जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं | शाही शायरी
jahan-e-tang mein tanha hua main

ग़ज़ल

जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं

ज़ाहिद फ़ारानी

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जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं
बहुत अच्छा हुआ रुस्वा हुआ मैं

मिरी आँखों का पहचाना हुआ तू
निगाह-ए-दहर का देखा हुआ मैं

उभर आई हवा की मौज सर में
हरीफ़-ए-मौजा-ए-दरिया हुआ मैं

जबीन-ए-आब की तहरीर दुनिया
हुरूफ़-ए-संग से लिक्खा हुआ मैं

फ़ना के हाथ में मेरी बक़ा है
ख़ुद अपनी ख़ाक से पैदा हुआ मैं

हुई वाबस्ता मुझ से तुर्श-रुई
कि नश्शा हूँ मगर उतरा हुआ मैं

छुपा हूँ आज तक उस की नज़र से
ज़माने भर पे आईना हुआ मैं