EN اردو
जहान-ए-ताज़ा के अफ़्कार साथ ले जाओ | शाही शायरी
jahan-e-taza ke afkar sath le jao

ग़ज़ल

जहान-ए-ताज़ा के अफ़्कार साथ ले जाओ

मुहिब कौसर

;

जहान-ए-ताज़ा के अफ़्कार साथ ले जाओ
मिरी ग़ज़ल मिरे अशआ'र साथ ले जाओ

क़दम क़दम पे यहाँ डिग्रियाँ तो मिलती हैं
ख़ुदा के वास्ते मेआ'र साथ ले जाओ

रह-ए-हयात में इंसानियत भी बिकती है
ज़रा सँभाल के किरदार साथ ले जाओ

दयार-ए-ग़ैर में पूछेगा ख़ैरियत कोई
तुम अपने शहर का अख़बार साथ ले जाओ

दिलों के बीच जहाँ हो अदावतों की ख़लीज
वहाँ ख़ुलूस की पतवार साथ ले जाओ