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जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है | शाही शायरी
jahan-e-rang-o-bu kitna hasin hai

ग़ज़ल

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

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जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है
ये गुलशन रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-बरीं है

मिरा हुस्न-ए-नज़र हुस्न-आफ़रीं है
कि हर ज़र्रा जहाँ का मह-जबीं है

तिरी हस्ती से क़ाएम है ये हस्ती
ये हस्ती ख़ुद कोई हस्ती नहीं है

तिरा दर छोड़ कर जाएँ कहाँ हम
कि ये अम्न-ओ-अमाँ की सर-ज़मीं है

फ़साद-अंगेज़-ए-आब-ओ-हवा से
मिज़ाज-ख़ाक याँ अब आतिशीं है

'हकीम' इस से ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे
ये सरकश नफ़स मार-ए-आस्तीं है