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जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी | शाही शायरी
jahan baat wahdat ki gahri rahegi

ग़ज़ल

जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

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जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी
वहाँ फ़िक्र अपनी न तेरी रहेगी

लजाजत अमीरों से यक-दम उठा दे
क़नाअ'त से अपनी फ़क़ीरी रहेगी

न जीने की ख़्वाहिश न मरने का ग़म है
जो हालत है अपनी वो ठहरी रहेगी

मुजल्ला हुआ जब से दिल है हमारा
न मरक़द में अपने अँधेरी रहेगी

घमंड हर तरह करना ज़ेबा नहीं है
जवानी किसी की न पीरी रहेगी

ख़ुदाई की क़ुदरत ख़ुदी से है 'मरकज़'
मुक़ल्लिद हैं जब तक असीरी रहेगी