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जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं | शाही शायरी
jagah phulon ki rakhte hain ghana saya banate hain

ग़ज़ल

जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं

अज़हर अदीब

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जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं
चलो अपने ख़याली शहर का नक़्शा बनाते हैं

अभी तो चाक पर हैं क्या कहें हम अपने बारे में
न जाने दस्त-ए-कूज़ा-गर हमें कैसा बनाते हैं

बनानी है हमें तस्वीर-ए-दिल काग़ज़ पे लेकिन हम
कभी दरिया बनाते हैं कभी सहरा बनाते हैं

ग़ज़ल उस के लिए कहते हैं लेकिन दर-हक़ीक़त हम
घने जंगल में किरनों के लिए रस्ता बनाते हैं

कभी भूले से भी उस की तरफ़ मत देखना 'अज़हर'
ज़रा सी बात का ये लोग अफ़्साना बनाते हैं