जग में आ कर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा
जान से हो गए बदन ख़ाली
जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखा
नाला फ़रियाद आह और ज़ारी
आप से हो सका सो कर देखा
उन लबों ने न की मसीहाई
हम ने सौ सौ तरह से मर देखा
ज़ोर आशिक़-मिज़ाज है कोई
'दर्द' को क़िस्सा मुख़्तसर देखा
ग़ज़ल
जग में आ कर इधर उधर देखा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'