जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है
मगर हम पर जो है तेरा सितम ऐसा भी होता है
अदू के आते ही रौनक़ सिधारी तेरी महफ़िल की
मआज़-अल्लाह इंसाँ का क़दम ऐसा भी होता है
रुकावट है ख़लिश है छेड़ है ईज़ा पे ईज़ा है
सितम अहल-ए-वफ़ा पर दम-ब-दम ऐसा भी होता है
हसीनों की जफ़ाएँ भी तलव्वुन से नहीं ख़ाली
सितम के ब'अद करते हैं करम ऐसा भी होता है
दिल-ए-महजूर आख़िर इंतिहा है हर नहूसत की
कभी सादेन होते हैं बहम ऐसा भी होता है
न कर शिकवा हमारी बे-सबब की बद-गुमानी का
मोहब्बत में तिरे सर की क़सम ऐसा भी होता है
न हो दर्द-ए-जुदाई से जो वाक़िफ़ उस को क्या कहिए
हमें वो देख कर कहते हैं ग़म ऐसा भी होता है
बुतों के मिलने-जुलने पर न जाना ऐ दिल-ए-नादाँ
बढ़ा कर रब्त कर देते हैं कम ऐसा भी होता है
हमें बज़्म-ए-अदू में वो बुलाते हैं तमन्ना से
करम ऐसा भी होता है सितम ऐसा भी होता है
जगह दी मुझ को काबे में ख़ुदा-ए-पाक ने ज़ाहिद
तू कहता था कि मक़्बूल-ए-हरम ऐसा भी होता है
हुआ करता है सब कुछ ऐ 'असर' उस की ख़ुदाई में
करें दावा ख़ुदाई का सनम ऐसा भी होता है
ग़ज़ल
जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है
इम्दाद इमाम असर