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जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई | शाही शायरी
jafa se wafa mustarad ho gai

ग़ज़ल

जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई

मुज़्तर ख़ैराबादी

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जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई
यहाँ हम भी क़ाइल हैं हद हो गई

निगाहों में फिरती है आठों पहर
क़यामत भी ज़ालिम का क़द हो गई

अज़ल में जो इक लाग तुझ से हुई
वो आख़िर को दाग़-ए-अबद हो गई

मिरी इंतिहा-ए-वफ़ा कुछ न पूछ
जफ़ा देख जो ला-तअ'द हो गई

मुकरते हो अल्लाह के सामने
अब ऐसा भी क्या झूट हद हो गई

तअ'ल्लुक़ जो पल्टा तो झगड़ा बना
मोहब्बत जो बदली तो कद हो गई

वो आँखों की हद्द-ए-नज़र कब बने
नज़र ख़ुद वहाँ जा के हद हो गई

जफ़ा से उन्हों ने दिया दिल पे दाग़
मुकम्मल वफ़ा की सनद हो गई

क़यामत में 'मुज़्तर' किसी से मिले
कहाँ जा के घेरा है हद हो गई