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जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ | शाही शायरी
jafa-pasandon ko sunte hain na-pasand hua

ग़ज़ल

जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ

ज़ेबा

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जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
अब और भी दिल-ए-मायूस दर्द-मंद हुआ

मह-ए-दो-हफ़्ता बनाया हमीं ने आरिज़ को
हमारी वज्ह से हुस्न आप का दो-चंद हुआ

जुदा जुदा है मज़ाक़ अपना अपना दुनिया में
हमें जो दर्द तो दिल दर्द को पसंद हुआ

वो फेर फेर गए तोड़ तोड़ कर अक्सर
ये दिल वो है जो कई बार दर्द-मंद हुआ

कोई हज़ार कहे अपनी ही ये करता है
हमारा दिल न हुआ कोई ख़ुद-पसंद हुआ

हबाब का ये इशारा है अहल-ए-ग़फ़लत से
हुआ वो पस्त जो दुनिया में सर-बुलंद हुआ

हुआ है इश्क़ में कम हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ऐसा
कि दिल को यार तो दिल यार को पसंद हुआ

हिला दिया सर-ए-बाम आज जा के दिल उन का
असर को नाला-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं कमंद हुआ

दिखाया दिल को ये दिन किब्र-ओ-बे-नियाज़ी ने
कि नाज़ उठा के किसी के नियाज़-मंद हुआ

ये कौन दिलबर-ए-नाज़ुक-मिज़ाज से पूछे
पसंद भी दिल-ए-ज़ेबा-ए-दर्द-मंद हुआ