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जड़ों से सूखता तन्हा शजर है | शाही शायरी
jaDon se sukhta tanha shajar hai

ग़ज़ल

जड़ों से सूखता तन्हा शजर है

फ़सीह अकमल

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जड़ों से सूखता तन्हा शजर है
मिरे अंदर भी इक प्यासा शजर है

हज़ारों आँधियाँ झेली हैं उस ने
ज़मीं थामे हुए बूढ़ा शजर है

पुजारी जल चढ़ा कर जा रहे हैं
नगर में दुख के सुख-दाता शजर है

मुसाफ़िर और परिंदे जानते हैं
कि इन के वास्ते क्या क्या शजर है

जो हो फ़ुर्सत तो उस के पास बैठो
क़लंदर है वली बाबा शजर है

ज़मीं पर प्यार तो ज़िंदा है इस से
हम इंसानों से तो अच्छा शजर है

हमारे शहर में 'अकमल' अभी तक
मोहब्बत बाँटने वाला शजर है