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जबीं पे शहर की लिख कर फ़ज़ा उदासी की | शाही शायरी
jabin pe shahr ki likh kar faza udasi ki

ग़ज़ल

जबीं पे शहर की लिख कर फ़ज़ा उदासी की

जाफ़र साहनी

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जबीं पे शहर की लिख कर फ़ज़ा उदासी की
बहुत है ख़ुश कोई दे कर दुआ उदासी की

हयात पा न सकेगी हुसैन सी ख़्वाहिश
समाअ'तों में है जब तक सदा उदासी की

फ़लक के चाँद सितारों में रौशनी कम है
मुझे तो लगती है इस में ख़ता उदासी की

चहकती शाम में मासूम क़हक़हों के बीच
सजी है क्यूँ तिरे सर पर रिदा उदासी की

चराग़ शौक़ से आख़िर वो हो गया रौशन
लिए थी क़ैद में जिस को घटा उदासी की

न हो सका मुझे मालूम कर गई कैसे
मिरे वजूद को लर्ज़ां हवा उदासी की

ग़मों की रुत से कभी दिल फ़िगार मत होना
ख़ुशी लुटा गई अक्सर अदा उदासी की

मसर्रतों से कहीं दिल-रुबा सितम निकला
लपेटे शाल बहुत ख़ुशनुमा उदासी की

अजीब हाल है 'जाफ़र' बदलते मौसम का
किसी को कर गई शादाँ सज़ा उदासी की