जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा
शुरू-ए-इश्क़ है वो फ़ितरतन छुपाएगा
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
इस आग को न तिरा पैरहन छुपाएगा
तिरा इलाज शिफ़ा-गाह-ए-अस्र-ए-नौ में नहीं
ख़िरद के घाव तू दीवाना-पन छुपाएगा
हिसार-ए-ज़ब्त है अब्र-ए-रवाँ की परछाईं
मलाल-ए-रूह को कब तक बदन छुपाएगा
नज़र का फ़र्द-ए-अमल से है सिलसिला दरकार
यक़ीं न कर ये सियाही कफ़न छुपाएगा
किसे ख़बर थी कि ये दौर-ए-ख़ुद-ग़रज़ इक दिन
जुनूँ से क़ीमत-ए-दार-ओ-रसन छुपाएगा
तिरा ग़ुबार ज़मीं पर उतरने वाला है
कहाँ तक अब ये बगूला थकन छुपाएगा
खुलेगा बाद-ए-नफ़स से जो रुख़ पे नील-कँवल
उसे कहाँ तिरा उजला बदन छुपाएगा
तिरे कमाल के धब्बे तिरे उरूज के दाग़
छुपाएगा तो कोई अहल-ए-फ़न छुपाएगा
जिसे है फ़ैज़ मिरी ख़ानक़ाह से 'दानिश'
वो किस तरह मिरा रंग-ए-सुख़न छुपाएगा
ग़ज़ल
जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा
एहसान दानिश