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जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा | शाही शायरी
jab zara naghmon se bulbul gul-fishan ho jaega

ग़ज़ल

जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा

क़द्र बिलगरामी

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जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा
टोकरी फूलों की सारा आशियाँ हो जाएगा

जब उठेगा जोश-ए-मय बन जाएगा वो आफ़्ताब
जब उड़ेगा ख़ुम का सर-पोश आसमाँ हो जाएगा

जिस्म-ओ-जाँ का फ़ैसला सारा उसी के हाथ है
पाँव तेरी तेग़ का ख़ुद दरमियाँ हो जाएगा

मोजिज़-ए-शक़्क़ुल-क़मर दिखलाएगी अंगुश्त-ए-हुस्न
चाँद तेरे परतवे से ख़ुद कताँ हो जाएगा

रिंद हाँ अम्मामा-ए-ज़ाहिद पे हूँ हथ-फेरीयाँ
कश्ती-ए-मय का इक अच्छा बादबाँ हो जाएगा

सर पे छन छन कर बलाएँ आएँगी ख़ामोश 'क़द्र'
आह ख़ींचोगे तो छलनी आसमाँ हो जाएगा