जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा
टोकरी फूलों की सारा आशियाँ हो जाएगा
जब उठेगा जोश-ए-मय बन जाएगा वो आफ़्ताब
जब उड़ेगा ख़ुम का सर-पोश आसमाँ हो जाएगा
जिस्म-ओ-जाँ का फ़ैसला सारा उसी के हाथ है
पाँव तेरी तेग़ का ख़ुद दरमियाँ हो जाएगा
मोजिज़-ए-शक़्क़ुल-क़मर दिखलाएगी अंगुश्त-ए-हुस्न
चाँद तेरे परतवे से ख़ुद कताँ हो जाएगा
रिंद हाँ अम्मामा-ए-ज़ाहिद पे हूँ हथ-फेरीयाँ
कश्ती-ए-मय का इक अच्छा बादबाँ हो जाएगा
सर पे छन छन कर बलाएँ आएँगी ख़ामोश 'क़द्र'
आह ख़ींचोगे तो छलनी आसमाँ हो जाएगा
ग़ज़ल
जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा
क़द्र बिलगरामी