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जब वो मुझ से कलाम करता है | शाही शायरी
jab wo mujhse kalam karta hai

ग़ज़ल

जब वो मुझ से कलाम करता है

अलमास शबी

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जब वो मुझ से कलाम करता है
धड़कनों में क़याम करता है

लाख तुझ से है इख़्तिलाफ़ मगर
दिल तिरा एहतिराम करता है

दिन कहीं भी गुज़ार ले ये दिल
तेरे कूचे में शाम करता है

हाथ थामा न हाल ही पूछा
यूँ भी कोई सलाम करता है

वो फ़ुसूँ-कार इस क़दर है 'शबी
बैठे बैठे ग़ुलाम करता है