जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
ढलते ढलते रात ढली
उन आँखों ने लूट के भी
अपने ऊपर बात न ली
शम्अ' का अंजाम न पूछ
परवानों के साथ जली
अब के भी वो दूर रहे
अब के भी बरसात चली
'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल
इस में जीत से मात भली
ग़ज़ल
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
ख़ातिर ग़ज़नवी

