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जब उस ने आने का इक दिन इधर इरादा किया | शाही शायरी
jab usne aane ka ek din idhar irada kiya

ग़ज़ल

जब उस ने आने का इक दिन इधर इरादा किया

मुस्तफ़ा शहाब

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जब उस ने आने का इक दिन इधर इरादा किया
तो मैं ने दिल का मकाँ और भी कुशादा किया

मिरे मिज़ाज से मिलता नहीं था मेरा लिबास
तो तार तार यही सोच कर लिबादा किया

न था जो जीत का इम्काँ तो सुल्ह कर ली है
यूँ पिछली हार से इस बार इस्तिफ़ादा किया

वो एक शख़्स जो मुझ से गुरेज़-पा है बहुत
गुमाँ है प्यार भी मुझ से उसी ने ज़्यादा किया

अजब कि अर्ज़-ए-तमन्ना के पेच-ओ-ख़म न खुले
'शहाब' हुस्न-ए-तलब को हज़ार सादा किया