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जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था | शाही शायरी
jab tilism-e-asar se nikla tha

ग़ज़ल

जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था

हामिद जीलानी

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जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था
ज़हर-ए-शीरीं समर से निकला था

उड़ गए आँधियों में जब पत्ते
ख़ून कितना शजर से निकला था

मुझ से पूछा उसी ने मेरा पता
ढूँडने जिस को घर से निकला था

धूप चमकी तो मेहमाँ की तरह
साया दीवार-ओ-दर से निकला था

लोग सोए पड़े थे और ख़ुर्शीद
हज्ला-ए-अब्र-ए-तर से निकला था