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जब तलक तीर तिरा आवे है नख़चीर तलक | शाही शायरी
jab talak tir tera aawe hai naKHchir talak

ग़ज़ल

जब तलक तीर तिरा आवे है नख़चीर तलक

मीर हसन

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जब तलक तीर तिरा आवे है नख़चीर तलक
ले ये नख़चीर ही आ पहुँचा तिरे तीर तलक

दस्त-ओ-पा मारे बहुत चाह-ए-ज़नख़ में दिल ने
हाथ लेकिन न गया ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर तलक

शुक्र-सद-शुक्र कि उक़दे यूँ ही हल होते गए
काम पहुँचा न हमारा कभी तदबीर तलक

उस की सूरत का दिवाना हूँ कि जिस का ख़त-ओ-ख़ाल
न गया मानी-ओ-बहज़ाद की तहरीर तलक

है यही शौक़ शहादत का अगर दिल में तो इश्क़
ले ही पहुँचेगा हमें भी तिरी शमशीर तलक

इक मुसलमान का जी जाता है उल्फ़त में तिरी
जा कहे कोई ये उस काफ़िर-ए-बे-पीर तलक

जब तलक ज़र है तो सब कोई है फिर कोई नहीं
सच है मक्खी भी रहे है शकर-ओ-शीर तलक

इस तरह बैठ गया ख़ाना-ए-दिल मेरा कि बस
काम फिर उस का न पहुँचा कभी तामीर तलक

ख़ून हो हो के टपकता है ये सौ रंग से दिल
ता किसी रंग में पहुँचे तिरी तस्वीर तलक

मैं भी इक मअनी-ए-पेचीदा अजब था कि 'हसन'
गुफ़्तुगू मेरी न पहुँची कभी तक़रीर तलक