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जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे | शाही शायरी
jab tak safed aandhi ke jhonke chale na the

ग़ज़ल

जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे

अज़हर इनायती

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जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे
इतने घने दरख़्तों से पत्ते गिरे न थे

इज़हार पर तो पहले भी पाबंदियाँ न थीं
लेकिन बड़ों के सामने हम बोलते न थे

उन के भी अपने ख़्वाब थे अपनी ज़रूरतें
हम-साए का मगर वो गला काटते न थे

पहले भी लोग मिलते थे लेकिन तअ'ल्लुक़ात
अंगड़ाई की तरह तो कभी टूटते न थे

पक्के घरों ने नींद भी आँखों की छीन ली
कच्चे घरों में रात को हम जागते न थे

रहते थे दास्तानों के माहौल में मगर
क्या लोग थे कि झूट कभी बोलते न थे

'अज़हर' वो मकतबों के पढ़े मो'तबर थे लोग
बैसाखियों पे सिर्फ़ सनद की खड़े न थे