EN اردو
जब सीं देखा हूँ यार की सूरत | शाही शायरी
jab sin dekha hun yar ki surat

ग़ज़ल

जब सीं देखा हूँ यार की सूरत

सिराज औरंगाबादी

;

जब सीं देखा हूँ यार की सूरत
गुल कूँ बूझा हूँ ख़ार की सूरत

क्यूँ न हुए क़त्ल दम-ब-दम आशिक़
हैं भवें ज़ुल-फ़िक़ार की सूरत

मुझ कूँ आईना-ए-तसव्वुर है
दिलबर-ए-गुल-एज़ार की सूरत

दिल ने मेरे किया है तौक़-ए-गुलू
ज़ुल्फ़-ए-गुल-रू है हार की सूरत

ना-उमीदी में जल्वा-ए-दीदार
है ख़िज़ाँ में बहार की सूरत

सफ़्हा-ए-दिल पे सीना-चाकों के
नक़्श है उस निगार की सूरत

काग़ज़-ए-अब्र पर लिखा है 'सिराज'
दीदा-ए-अश्क-बार की सूरत