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जब से उन की मेहरबानी हो गई | शाही शायरी
jab se unki mehrbani ho gai

ग़ज़ल

जब से उन की मेहरबानी हो गई

सलीम रज़ा रीवा

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जब से उन की मेहरबानी हो गई
ज़िंदगी अब रात-रानी हो गई

उस ने माँगा ज़िंदगी सौग़ात में
नाम उस के ज़िंदगानी हो गई

इब्तिदा-ए-जिंदगी की सुब्ह से
शाम तक पूरी कहानी हो गई

रूठना हँसना मनाना प्यार में
ज़िंदगी कितनी सुहानी हो गई

खो गए मसरूफ़ियत की भीड़ में
ख़त्म इस में ज़िंदगानी हो गई

मैं भी उन का हूँ दिवाना इस तरह
जिस तरह 'मीरा' दीवानी हो गई

उस ने माँगा ज़िंदगी सौग़ात में
नाम उस के ज़िंदगानी हो गई

ना-ख़ुदा जब ज़िंदगी का वो 'रज़ा'
पार अपनी ज़िंदगानी हो गई